माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत के लिए सौर ऊर्जा निर्माण को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि देश में सौर पैनल, बैटरी तथा इससे संबंधित सभी उपकरणों पर आयात की निर्भरता खत्म करनी होगी तथा इन उपकरणों का देश में उत्पादन बढ़ाना होगा। प्रधानमंत्री जी की इस योजना के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया दोनों योजनाओं को बढ़ावा मिलेगा. कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मोदी जी ने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के द्वारा मध्यप्रदेश के रीवा जिले में एशिया की सबसे बड़ी रीवा अल्ट्रा मेगा सौर परियोजना उद्घाटन किया था। रीवा अल्ट्रा मेगा सौर परियोजना एशिया की सबसे बड़ी 750 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाली सोलर प्रोजेक्ट है.
उद्घाटन के मौके पर उन्होंने जनता को संबोधन करते हुए कहा की, आत्मनिर्भर भारत के लिए सौर ऊर्जा निर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बहुत आवश्यक है। सौर ऊर्जा देश को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करने में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाली है और इस स्वप्न को साकार करने में हम अथक प्रयास कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री जी ने बताया कि सोलर पैनल, बैटरी तथा इसके अन्य उपकरणों का निर्माण देश में ही करने के लिए हम काम कर रहे हैं। देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हमे सोलर पैनल सहित सभी उपकरणों के आयात पर निर्भरता खत्म करनी होगी। हमें मेक इन इंडिया के तहत इन सभी उपकरणों का निर्माण भारत में ही करना होगा. देश के सरकारी विभागों को भी मेड इन इंडिया उपकरण ही खरीदने के निर्देश दिए गए है। घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए हम अनेकों योजनाए बना रहे हैं। सौर ऊर्जा निर्माण के मामले में दुनिया में हम पांचवे स्थान पर हैं। उन्होंने यह बताया की सौर ऊर्जा 21 वीं सदी की ऊर्जा का एक बड़ा माध्यम साबित होने वाला है। पूरी दुनिया में चर्चाओं का विषय है कि भारत में सौर ऊर्जा इतनी सस्ती कैसे है। मोदीजी ने कहा कि दुनिया भर की भारत से इसी आशा और अपेक्षा को देखते हुए, हम पूरे विश्व को एकजुट करने में लगे हुए हैं। देश के युवाओं और उद्यमियों से यही आग्रह है कि इस अवसर का फायदा उठाएं और देश को आत्मनिर्भर बनाने में अपना योगदान दें।
सौर ऊर्जा निर्माण के क्षेत्र में तरक़्क़ी के कारण हमारा देश आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सौर ऊर्जा बाज़ार बन गया है, सौर ऊर्जा उपकरण बनाने वाले उद्योग इस अवसर का लाभ उठा पाने में असफल रहें है. अब तक हमारा देश सौर ऊर्जा उत्पादन करने वाली मशीनरी का 80 प्रतिसत आयात चीन से करता है.
प्रधानमंत्री ने सौर ऊर्जा को सुरक्षित और सस्ती बताते हुए कहा की, बिजली सब तक पहुंचे, पर्याप्त पहुंचे यही हमारा उद्देश्य है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा की हमारा वातावरण शुद्ध बना रहे, इसी सोच के साथ हम निरंतर काम कर रहे हैं। उनकी यही सोच सौर ऊर्जा को लेकर उनकी रणनीतिओं में भी साफ झलकती है। सौर ऊर्जा जहा साल 2014 में सात से आठ रुपए प्रति यूनिट होती थी वहीं अब घटकर दो से ढाई रुपए प्रति यूनिट हो चुकी है। इसका बहुत बड़ा लाभ देश में उद्योगों, कंपनीओ और देश को मिला है।
भारत ने यह साबित कर दिखाया है कि अर्थव्यवस्था और पर्यावरण एक दूसरे के विरोधी नहीं बल्कि पूरक भी हो सकते हैं। आज सरकार द्वारा शुरू गए सभी कार्यकमों में पर्यावरण सुरक्षा को बहुत महत्व दिया गया है। उनकी हर योजना का निर्माण पर्यावरण और लोगो की जीवनशैली को देखते हुए ही किया जाता है. उन्होंने कहा, जैसे-जैसे हमारे देश विकास की तरफ बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हमारी ऊर्जा और बिजली की खपत भी बढ़ रही हैं।
ऐसे में देश को आत्मनिर्भर बनने के लिए बिजली और ऊर्जा क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता बहुत आवश्यक है। अगर ऊर्जा संबंधित योजनाओं और प्रधानमंत्री जी द्वारा किये गए बदलावों की बात करे तो कुछ ही साल पहले प्रधानमंत्री जी ने देश में सामान्य बिजली बल्बों के बजाय एलईडी बल्ब के इस्तेमाल का अभियान शुरू किया.अपनी इस अभियान का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री जी ने कहा की, एलईडी बल्ब के इस्तेमाल से करीब 600 अरब यूनिट बिजली की खपत कम हुई है।
भारत के प्रमुख सौर निर्माताओं ने सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान को समर्थन दिया है और सौर ऊर्जा क्षेत्र की पूर्ण क्षमता को साकार करने के लिए प्रधानमंत्री के समर्थन की मांग की है।
देश की फोटोवोल्टिक पैनल क्षमता को बढ़ाने के लिये सरकार ने सोलर पैनल निर्माण उद्योग को 210 अरब रुपए की वित्तय सहायता प्रदान करने की योजना बनाई है। सौर ऊर्जा का निर्माण करने के लिए सरकार ने सौर विनिर्माण को संवर्धित करने के लिए प्रधानमंत्री योजना के तहत साल 2030 तक कुल ऊर्जा का 40 प्रतिशत हरित ऊर्जा से उत्पन्न करने का लक्ष्य बनाया है।
सोलर प्लेट का निर्माण उच्च तकनीक के साथ साथ काफ़ी पूंजी भी लगानी पड़ती है. सौर ऊर्जा के उपकरणों निर्माण में पॉली सिलिकॉन, वेफर, सेल और मॉड्यूल की असेंबली की जाती है. लेकिन भारत में सौर ऊर्जा से संबंधित अधिकतर कंपनियां अभी केवल मॉड्यूल असेंबली ही करती हैं. भारत के पास ज़्यादा लागत और तकनीकी क्षमता वाले उपकरणों के उत्पादन का अनुभव नहीं है.
देश में कंपनियों ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अभी तक केवल 246 पेटेंट ही कराए हैं. इनसे साफ़ जाहिर होता है कि इस क्षेत्र में हमारे देश की उपलब्धियां बेहद कम हैं. वही दूसरी तरफ चीनी कंपनियों ने 39 हज़ार 784 पेटेंट कराए हैं.
सौर ऊर्जा के संसाधनों में लगातार कई प्रकार के तकनिकी परिवर्तन होते रहते हैं. जिसमे बहुत अधिक पूंजी और जानकारी दोनों की आवश्यकता होती है. तकनिकी परिवर्तन में लगने वाली लागत कम करने के देश को अपने विकास और रिसर्च को बढ़ावा देना चाहिए. ताकि घरेलु सौर ऊर्जा निर्माता कम लागत वाले स्थानीय और नई जेनेरशन के सोलर पैनल बनाने वाली नई तकनीक विकसित कर सकें.
सौर ऊर्जा निर्माण की यूनिट्स लगाने में काफ़ी पूंजी की आवश्यकता होती है. लेकिन भारत में ऐसे उद्योग लगाने में बहुत दिक्क़ते आती है। चूंकि सौर ऊर्जा यूनिट्स को स्थापित करने में अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है जिसके लिए आपको लोन लेना पड़ता है और भारत में लोन पर ब्याज की दर बहुत अधिक है. हमारे देश में में लोन की ब्याज दर लगभग 11 प्रतिशत है, जो पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में सबसे अधिक है. जबकि इसके विपरीत चीन में लोन केवल पांच प्रतिशत की दर पर आसानी से मिल जाता है.
इस परेशानी से उबरने के लिए सरकार को सौर ऊर्जा निर्माण क्षेत्र में विकास के लिए कुछ वित्तीय संस्थानों की स्थापना करनी चाहिए. ये वित्तय संस्थान लोन के माध्यम से सौर ऊर्जा के घरेलू निर्माण में कई हद तक सहायता कर सकते हैं.
भारत के आत्मनिर्भर भारत अभियान ने देश की सौर ऊर्जा की निर्माण और इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए अवसरों के नए द्वार खोले हैं. लेकिन सरकार को अब ज़मीनी स्तर पर भी आवश्यक सुधारों की प्रक्रिया भी शुरू करनी चाहिए. आत्मनिर्भर सेना के विशेषज्ञ और हमारी टीम अन्य बड़े तकनीकी संस्थानों के साथ मिल कर कौशल विकास के कार्यक्रम में सरकार का पूरा समर्थन कर रहें हैं. जिनके माध्यम से भारत के सौर ऊर्जा के निर्माण क्षेत्र को विकास पंख मिलेंगे और आत्मनिर्भर भारत के सपने को ऊंची उड़ान प्रदान करेगा।