
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत योजना को आर्थिक मोर्चे पर कुछ हद तक कामयाबी मिलती नजर आ रही है। अभी हाल ही में सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान राहत पैकेज की तीसरी किश्त की घोषणा की है. आत्मनिर्भर भारत योजना का तीसरा पैकेज कुल 2,65,080 करोड़ रुपयों का है. आत्मनिर्भर भारत स्कीम (Aatmnirbhar bharat Scheme) की शुरुआत मुख्यतः देश में रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए ही की गई है. इस योजना के तहत तनावग्रस्त 26 सेक्टरों के साथ साथ, संपत्ति खरीदने वालों और रियल एस्टेट डेवलपरों के लिए भी कुछ कदम उठाए गए हैं. नई “आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना” के तहत भविष्यनिधि संगठन (ईपीएफओ) के साथ पंजीकृत कंपनियां अगर नए लोगों को या मार्च से सितंबर के बीच नौकरी गंवा चुके लोगों को नौकरी पर रखती हैं तो उन्हें सरकार की तरफ से कुछ लाभ मिलेंगे.
इतिहास में पहली बार लगातार कई महीनों से आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर इन राहत पैकजों का कितना असर हो पाएगा, यह तो कुछ महीनों बाद ही पता चलेगा. इस वर्ष मार्च के अंत में केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी से होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए पहली आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी, जिसका नाम प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना रखा गया था.
इस योजना में राहत राशि के रूप में एक लाख 70 हजार करोड़ रूपए की घोषणा की गई थी। इस राहत पैकेज की घोषणा आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को ध्यान में रखकर की गई थी. जिसके तहत गरीब लोगों के लिए मुफ्त अनाज, मनरेगा के तहत मिलने वाली राशि में वृद्धि, स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बीमा योजना, किसानों, विधवाओं, बुजुर्गों और विकलांगों को धनराशि वितरण, गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों को मुफ्त गैस के सिलेंडर और PF खातों में सरकार द्वारा योगदान आदि महत्वपुर्ण कदम शामिल थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट के इस दौर में भारत की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए आत्मनिर्भर भारत लोन योजना की पहली किस्त के रूप में 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी. इस पैकेज को आत्मनिर्भर भारत अभियान का नाम दिया गया है. इस घोषणा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कि इस योजना के माध्यम से लोगों को स्वयं का कोई भी व्यवसाय शुरू करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी और यह कोशिश की जाएगी कि अगले कुछ सालों में भारत में आयात को घटाकर निर्यात को बढ़ावा दिया जाए, यानी जरुरत के सभी उत्पाद भारत में निर्यात किए जाए. सरकार के इस कदम से देश न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत होगा बल्कि आयात के बजाय निर्यात पर जोर देकर आत्मनिर्भर भी बनेगा.
इसके बाद मई के ही महीने में आत्मनिर्भर भारत स्कीम की दूसरी किस्त आई जिसमे राहत राशि के रूप में लगभग तीन लाख करोड़ रुपए का एलान किया गया. इस योजना का निर्माण विशेषकर किसानों, प्रवासी श्रमिकों और रेहड़ी-पटरी वालों के लिए किया गया था, जैसे की गरीबों और विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों के लिए मुफ्त अनाज की आपूर्ति, सड़क विक्रेता, रेहड़ी-पटरी वालों और किसानों के लिए आसान लोन, छोटे व्यापारियों को लोन के ब्याज पर दो प्रतिशत की छूट आदि.
सरकार का दावा है कि अभी तक की सभी योजनाओं को मिलाकर सरकार अभी तक कुल 29,87,641 करोड़ रुपयों के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा कर चुकी है, जिसमें आत्मनिर्भर पैकेज 3.0 भी शामिल है. हालांकि कुछ जानकारों मानना हैं कि अगर लॉकडाउन के शुरूआती दौर से तुलना करें तो अब स्थिति में कुछ हद तक सुधार आया है.
एक आधिकारिक सूचना के मुताबिक साल की पहली तिमाही में लगभग 45 प्रतिशत की गिरावट देखी गई थी जो दूसरी तिमाही में थोड़ा कम होकर 30 प्रतिशत तक हो गई है.
अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने की प्रक्रिया में मूल संकट मांग का है, यानी बाजार में अब मांग उतनी नहीं है जितनी की अपेक्षा की गई थी, लोग अब अपनी अहम जरुरत की चीजों के अलावा और कुछ खरीद ही नहीं रहे हैं. हलाकि मांग कुछ हद तक बढ़ी है लेकिन यह अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए काफी नहीं है. विशेषज्ञों का कहना है कि त्योहारों और शादीओ का माहौल होने के बावजूद बाजारों में उतनी खरीद और बिक्री नहीं है, जितनी हर साल इस समय होती है.
इस समय सिर्फ टेलीकॉम, आईटी, फार्मा जैसी कुछ क्षेत्रों को छोड़ कर बाकी सब क्षेत्रों में तनाव चल रहा है और यही एक कारण है की की अर्थव्यवस्था में अभी तक पूरी तरह से सुधार नहीं आया है.
साल 2020 के पहले पांच महीनों में चीन के साथ भारत का व्यापारिक घाटा पिछले वर्षो के मुकाबले आधा रह गया है। चीन के साथ व्यापारिक घाटे आधा होने के पीछे भारत के निर्यात में बढ़ोतरी और भारत में चीनी सामानों के आयात में बड़ी गिरावट ही अहम कारण हैं। सरकार ने भी चीनी सामानों के आयात को रोकने के लिए बड़े कदम उठाए थे जिसका असर इस साल के पहले पांच महीनों में देखा गया है।
अप्रैल से लेकर अगस्त 2020 के बीच भारत और चीन के बीच होने वाला व्यापारिक घाटा सिर्फ 12.6 अरब डॉलर का है. जबकि वर्ष 2019-20 में चीन के साथ यह व्यापारिक घाटा 22.6 अरब डॉलर का था, और साल 2018-19 में यह घाटा 23.5 अरब डॉलर का था.
भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद सरकार ने चीन से व्यापारिक निर्भरता को कम करने और चीनी सामानों का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। इन पांच महीनों में चीन में भारत का निर्यात बढ़ा है
एक आधिकारिक खबर के अनुसार, अप्रैल से लेकर अगस्त 2020 के बीच भारत और चीन के बीच होने वाला व्यापारिक घाटा सिर्फ 12.6 अरब डॉलर (करीब 93 हजार करोड़ रुपये) का है. जबकि वर्ष 2019-20 में चीन के साथ यह व्यापारिक घाटा 22.6 अरब डॉलर का था, और साल 2018-19 में यह घाटा 23.5 अरब डॉलर का था.
कोरोना महामारी से जूझते हुए यह साल अब समाप्ति की ओर है। कोविड-19 के कारण बनी चुनौतियों के बीच लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या रोजगार की ही रही है। महामारी के प्रकोप के कारण इस साल हजारों-लाखों प्रवासी मजदूरों तथा कामदारों को पलायन करना पड़ा। लॉकडाउन के दौरान नौकरी जाने
और अच्छे जमे-जमाए व्यवसाय तथा धंधे बंद होने से पैदा हुई आर्थिक संकट ने देश के सामने एक बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है जो की इतनी आसानी से समाप्त होने वाली नहीं है, ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान देश की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में कितना कारगर साबित होगा?
सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत स्कीम का आवाह्न पाते ही देश में आत्मनिर्भरता को लेकर एक क्रांति सी शुरू हो गई जैसे की देश को आत्मनिर्भर बनाने की इस चर्चा को किसी ने पहली बार उठाया हो, लेकिन ऐसा नहीं है की इससे पहले ऐसे कोई प्रयास नहीं किये गए हो। जबकि सच यही है की हर दौर में ऐसी चर्चाएं उठती रहती है.
हालांकि आत्म-निर्भरता का विचार अर्थहीन भी नहीं है। आत्मनिर्भरता का अर्थ है अपनी हर जरूरतों के लिए स्वयं पर निर्भर रहना और आवश्यक निर्णय लेने के लिए अपने विवेक पर निर्भरता रखना.
आत्म-निर्भरता भौतिक जरूरतों की कसौटी पर बहुत हद तक संभव भी है जहां हम अपनी हर जरुरत के उत्पादों का निर्यात करके देश को आत्मनिर्भरता की और अग्रसर कर सकते है. देखा जाए तो विदेशी कंपनीओ ने सुविधाओं के नाम पर हमारे आस पास एक बहुत बड़ा संजाल बना दिया है, जिसमे हम अपनी हर जरुरत के लिए इन कंपनीओ से आयत पर निर्भर रहते है . प्रधान मंत्री जी के आत्मनिर्भर भारत अभियान से देश में अब आयात के बजाय निर्यात पर ही जोर दिया जाएगा.
देश में विदेशी आयत को पूरी तरह से खत्म करके निर्यात पर जोर देना कठिन तो है लेकिन असंभव नहीं है . योजनाओं को अमल में लाने तथा महामारी और आर्थिक समस्या से पार पाने और उनका विकल्प तलाशने में कुछ समय तो लगेगा।
क्योकि हम एक बड़े उद्देश्य को पोषित करने जा रहे है इसीलिए हमें कुछ अवधि तक संतोष करना होगा, और साथ ही अपनी प्रतिबद्धता को भी मजबूत करना होगा। देश को यह भी समझने की आवश्यकता है की आत्मनिर्भर भारत स्कीम की अवधारणा कोई राजनीतिक कदम नहीं है, बल्कि यह मानव कल्याण और देश हित के लिए ही है।
और हमे इसे उसी संदर्भ में लेना चाहिए, और सभी को इसमें बढ़ चढ़कर भागीदारी देनी चाहिए। देश के संपूर्ण समर्थन और देशवासिओं के अथक प्रयास से ही आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को पूरा किया जा सकता है।